मेरी यादों के पोटली से ....
बूढ़ा बरगद
वो जो बूढा बरगद खड़ा है न खेतो के छोर पे
जहाँ से गांव की सीमा शुरू होती है
कभी कभी लगता था उसकी लम्बी जटाओं में पूरे खानदान के बुजुर्ग मुस्कुरा रहे हैं कुछ कराह रहे टूटती डाली से खुद को अपनो को बिलग होते देख कर।
बचपन में बरगद ही अपने आप मे एक पूरा जंगल नज़र आता था
उसके कोटर में छिप हम खेला करते
चुन लाते कुछ चिलबिल
कुछ महुआ और थोड़े से जामुन
दो चार आम संग इमली और खीरा उफ़्फ़्फ़....
उन गर्मियों में हम बचपन के दिन क्या खूब जिया करते थे।
अब वो बूढ़ा बरगद और बूढा हो गया है कोने में सिमट के रह गया है उसका वजूद
नही दिखते जटाओं में मुस्कुराते बुजुर्ग अब
हाँ सहमी सी वीरानी मिली उसके अधूरे छावं तले ....

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