मेरी यादों के पोटली से .... बूढ़ा बरगद वो जो बूढा बरगद खड़ा है न खेतो के छोर पे जहाँ से गांव की सीमा शुरू होती है कभी कभी लगता था उसकी लम्बी जटाओं में पूरे खानदान के बुजुर्ग मुस्कुरा रहे हैं कुछ कराह रहे टूटती डाली से खुद को अपनो को बिलग होते देख कर। बचपन में बरगद ही अपने आप मे एक पूरा जंगल नज़र आता था उसके कोटर में छिप हम खेला करते चुन लाते कुछ चिलबिल कुछ महुआ और थोड़े से जामुन दो चार आम संग इमली और खीरा उफ़्फ़्फ़.... उन गर्मियों में हम बचपन के दिन क्या खूब जिया करते थे। अब वो बूढ़ा बरगद और बूढा हो गया है कोने में सिमट के रह गया है उसका वजूद नही दिखते जटाओं में मुस्कुराते बुजुर्ग अब हाँ सहमी सी वीरानी मिली उसके अधूरे छावं तले ....
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*कुल्टी ________ गर्मी की छुट्टी आ रही है बच्चों की आँखों में अपने ननिहाल जाने के सपने पल रहे हैं,सारी सखियाँ अपने मायके जाने को खुशी-खुशी पहले से ही तैयारी करने में जुटी हैं।सारे बच्चे भी अपनी माँ के संग उनके बचपन के दिनों में लौटने को उत्सुक दिख रहे हैं। लेकिन मैं नहीं जाना चाहती अपने बचपन के उस हरे भरे और आज के उजाड़ "कुल्टी" को। मेरे बचपन का वो खूबसूरत सा शहर वक्त़ की कब्र में मर-खप गया है। वो मेरे बचपने का शहर,मेरी ज़िन्दगी के सबसे बेहतरीन उन 20 सालों का गवाह हँसता,मुस्कराता,खेलता,कूदता मेरा शहर "कुल्टी"। जिसने मुझे ज़िन्दगी दी,होश दिया,तरबीयत दी,प्यार दिया,लाड दिया दुलार दिया। जिसने मेरी रगों में दौड़ते लहू को रवानी दी "वो शहर" अब मुझे किसी बन्द पडी़ घड़ी की तरह दिखाई देता है।उस घडी़ की तरह जिसे घड़ीसाज़ ने खुद पुर्जे़-पुर्जे़ खोलकर बिखेर दिया हो।निकाल कर फेंक दिया हो एक-एक पेंच और कर दिया हो बे-पुर्जा़ खोखला। मेरा जन्म जब हुआ था "कुल्टी" शहर के इस भरे-पूरे परिवार में जो कि मेरा मयका है,तब ये शहर पूरी तरह से खुशहाल था। अपने पूरे शब